ऐ पाकिस्तान, बिहार के चुनाव में बीजेपी को तेरा ही सहारा है...
Written by Ravish Kumar
'इस चुनाव में बीजेपी हारती है तो पाकिस्तान में पटाखे फोड़े जाएंगे। क्या आप लोग ऐसा होने देंगे।' बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के इस बयान के बाद बिहार चुनावों में पाकिस्तान आ गया है। सुशील मोदी ने भी कहा है कि पाकिस्तान में जश्न मनेगा। हमारी राजनीति में गुप्त रूप से एक ध्रुवीकरण डिपार्टमेंट चलता है जिसके कुछ धारदार हथियार हैं। गोमांस, बांग्लादेश और पाकिस्तान का नाम अचूक हथियारों के रूप में लिया जाता है। अमित शाह ने पाकिस्तान का नाम क्या लिया, बिहार बीजेपी के नेता पाकिस्तान-पाकिस्तान करने लगे हैं। वैसे चुनावी काम में बांग्लादेश का हथियार ज़्यादा चलता था मगर अब लगता है कि भोथरा हो चुका है। वर्ना एक समुदाय को टारगेट करने के लिए बांग्लादेशी कह देना काफी होता था। पाकिस्तान हमारे मुल्क में एक मुल्क से ज़्यादा मज़हब की पहचान है। इसीलिए हमारे मुल्क में मज़हब की पहचान उभारने के लिए पाकिस्तान का सहारा लिया जाता है।
अगर सीमांचल के मुस्लिम बहुल इलाके में ध्रुवीकरण की बात थी तो कायदे से बांग्लादेश का ही नाम लिया जाना चाहिए था। सीमांचल की सीमा बांग्लादेश से जा लगती है। शायद बांग्लादेशी का चुनावी भूत ठंडा पड़ चुका है। दावों के मुताबिक, बीजेपी की जीत में कोई शंका नहीं है फिर भी पाकिस्तान में जश्न को लेकर इतनी बेचैनी क्यों है, समझना मुश्किल नहीं है। क्या जीतने के बाद बीजेपी गोमांस और पाकिस्तान के मुद्दों को औपचारिक रूप से श्रेय दे पाएगी। हम हिन्दुस्तानी हैं इसलिए नहीं कि हमारे पड़ोस में कोई पाकिस्तानी या बांग्लादेशी है। हमें पाकिस्तान के अनुपात में अपने नागरिकों की राष्ट्रीयता आंकने की आदत छोड़ देनी चाहिए। पाकिस्तान को लेकर दिए जा रहे बयानों का विश्लेषण करेंगे तो पता चलेगा कि भारत-पाक संबंधों को लेकर हमारी राजनीतिक समझ कितनी छिछली हो चली है।
मैं पाकिस्तान नहीं गया हूं। इसलिए गूगलागमन के ज़रिये पता लगाने का प्रयास किया कि पाकिस्तान में दिवाली कौन मनाता है। सारे सर्च यही बता रहे थे कि पाकिस्तान में हिन्दू दिवाली मनाते हैं। अमित शाह के तर्क के हिसाब से बीजेपी के हारने के बाद क्या उन्हें दिवाली नहीं मनानी चाहिए। वे अपनी पार्टी की हार से किसकी राष्ट्रीयता और धार्मिकता पर सवाल खड़े कर रहे हैं। 16 मई 2014 को बीजेपी ने ऐतिहासिक जीत हासिल की थी। गूगल तो बताता है कि वहां दिवाली मनाई गई थी। बल्कि पाकिस्तानी हिन्दुओं ने मांग की थी कि दिवाली के रोज़ छुट्टी होनी चाहिए। एक ख़बर के मुताबिक, सिंध प्रांत के मुख्यमंत्री ने पिछले साल पहली बार आधिकारिक तौर पर दिवाली मनाने और हिन्दू कर्मचारियों को बोनस देने का एलान किया था। गूगल यह नहीं बता सकता कि दिल्ली चुनावों में हार के बाद पाकिस्तान में दिवाली मनी थी या नहीं। वहां के पाकिस्तानी हिन्दुओं ने पटाखे छोड़े थे या नहीं। हम इन तर्कों और बयानों से किसे दागदार कर रहे हैं। किसे सवालों के घेरे में खड़े कर रहे हैं।
जून के महीने में जब रमज़ान शुरू हुआ तो प्रधानमंत्री मोदी ने बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ को फोन कर रमज़ान की बधाई दी थी और शुभ संकेत के तौर पर भारत की जेलों में बंद पाकिस्तानी कैदियों को रिहा किया था। दिवाली के मौके पर भारत के प्रधानमंत्री को आग्रह करना चाहिए कि पाकिस्तान और बांग्लादेश में दिवाली के दिन छुट्टी होनी चाहिए। ऐसा करने से भारत-पाक या भारत-बांग्लादेश संबंध और अधिक गुलज़ार होंगे। मुझे पता नहीं, बांग्लादेश के दौरे पर गए प्रधानमंत्री मोदी ने ऐसी कोई मांग की थी या नहीं।
अमित शाह के बयान से दिवाली के दिन पाकिस्तानी हिन्दुओं को नैतिक संकट न हो जाए कि हम यहां पटाखे छोड़ रहे हैं और वहां बीजेपी नहीं जीतने पर हम पर शक कर रही है। कहीं पाकिस्तान को यह कहने का मौका न मिल जाए कि देखिए बिहार में ग़लती से बीजेपी के हारने पर हमारे हिन्दू दिवाली मना रहे हैं। वैसे दावा तो बीजेपी के ही जीतने का है। उनके लिए बीजेपी एक ज़रूरी पार्टी हो सकती है क्योंकि पाकिस्तान और बांग्लादेश के हिन्दुओं के लिए लड़ने का दावा बीजेपी ही मुखर रूप से करती है। बांग्लादेश में मारे जा रहे हिन्दू ब्लॉगरों को लेकर बीजेपी सरकार कितनी सक्रिय है, आपको गूगल करना चाहिए। बीजेपी को हारना नहीं चाहिए वर्ना हारने पर हिन्दुस्तान में पटाखे छोड़ने वाले सभी लोग भी शक के दायरे में आ सकते हैं कि कहीं वे पाकिस्तानियों की तरह खुश तो नहीं हैं।
ज़ाहिर है पाकिस्तान को लेकर दिये जा रहे बयानों में बचपना झलक रहा है। बीजेपी के इन बयानों से दिवाली के दिन पटाखे फोड़ने वाले दोनों मुल्कों के हिन्दू फंस सकते हैं। वैसे किसी को पटाखे नहीं छोड़ने चाहिए। इससे सिर्फ प्रदूषण फैलता है, लेकिन पटाखे सभी धर्म के लोग फोड़ते हैं। आतिश
बाज़ी के लिए बारूद कौन लेकर आया, इस पर लिखूंगा तो लोग पटाखों पर धार्मिक कारणों से बैन लगाने के लिए दौड़ पड़ेगे। बीजेपी पाकिस्तान का नाम लेकर पाकिस्तान को डरा रही है तो उसका संबंध बिहार चुनाव से कैसे है। उसके लिए तो उसकी दिल्ली में बैठी सरकार ही काफी है। अमित शाह कहते हैं कि बिहार चुनाव का असर मोदी सरकार पर नहीं पड़ेगा। जब यहां के चुनाव का असर यहां की सरकार पर नहीं पड़ने वाला है तो पाकिस्तान को क्या फर्क पड़ेगा। पड़ेगा तो हम क्यों चिन्तित हैं।
लोकसभा चुनावों के दौरान जब बीजेपी नेता गिरिराज सिंह ने मोदी को रोकने वालों को पाकिस्तान जाने की बात कही थी तब इस बयान को लेकर वे बीजेपी में अकेले पड़ गए थे। गूगल किया तो पता चला कि बीजेपी अध्यक्ष के नाते राजनाथ सिंह ने उनसे सख्त एतराज़ जताया था और सुशील मोदी ने उनके इस बयान को ग़ैर ज़िम्मेदार बताया था। अब एक साल के भीतर बीजेपी के ही अध्यक्ष पाकिस्तान वाले बयान दे रहे हैं और वही सुशील मोदी कह रहे हैं कि लालू-नीतीश जीते तो बिहार को पाकिस्तान बना देंगे। क्या केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रहते कोई हिम्मत कर सकता है कि देश के किसी हिस्से को पाकिस्तान बना दे। क्या भारत के किसी राज्य का कोई मुख्यमंत्री पाकिस्तान बना सकता है।
सुशील मोदी ने पूछा है कि नीतीश कुमार बताएं कि वे तीन साल पहले पाकिस्तान क्यों गए थे। क्या यह सवाल एक दिन अटलजी और आडवाणीजी के दरवाज़े पर भी जाएगा कि वे बतायें कि पाकिस्तान क्यों गए थे। क्या सुशील मोदी अपने इन सवालों को प्रधानमंत्री की तरफ मोड़ देंगे कि वे बताएं कि शपथ ग्रहण के दिन पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को क्यों बुलाया था। गिरिराज सिंह कहते हैं कि लालू-नीतीश में जिन्ना का जिन्न घुस गया है। आडवाणीजी ने जिन्ना को सेकुलर बता दिया था। अपने पद से इस्तीफा देकर वे अभी तक बीजेपी में ही हैं। बिहार के चुनाव को धार्मिक राष्ट्रीयता के मुद्दे के सहारे मोड़ा जा रहा है। मुड़ा है या नहीं, यह तो आठ नवंबर को पता चलेगा।
राजनीति में तर्क की जगह बची होनी चाहिए। पाकिस्तान हमारे लिए कब पड़ोसी हो जाता है, कब होने वाला दोस्त हो जाता है और कब आतंकवाद से लेकर भारतीय मुसलमानों की निष्ठा पर सवाल करने का मौका बन जाता है, यह सब किसी पार्टी की चुनावी संभावना पर ज़्यादा निर्भर करता है। कभी क्रिकेट को लेकर भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध जैसा माहौल होता था लेकिन वो युद्ध इतनी बार हो चुका है कि अब किसी को फर्क ही नही पड़ता कि दोनों देश एक-दूसरे के साथ खेल ही नहीं पा रहे हैं। वही हाल राजनीति में पाकिस्तान का होने वाला है। पाकिस्तान का मसला चूक गया है। बिहार में जो जीते, वहां सबकी हार है। इस बार का चुनाव भूत-पिशाच और पाकिस्तान, गोमांस पर ही निपट गया। हां, बिहार के चुनाव में पाकिस्तान ज़रूर जीत गया है। वो बैठा-बैठा सोच रहा होगा कि हमारा नाम लेकर हिन्दुस्तान में कोई पार्टी चुनाव भी जीत सकती है। बीजेपी के जीतने के बाद पाकिस्तान को बधाई देनी चाहिए। मुबारक हो, आप हमारा नाम लेकर जीत गए!
Written by Ravish Kumar
'इस चुनाव में बीजेपी हारती है तो पाकिस्तान में पटाखे फोड़े जाएंगे। क्या आप लोग ऐसा होने देंगे।' बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के इस बयान के बाद बिहार चुनावों में पाकिस्तान आ गया है। सुशील मोदी ने भी कहा है कि पाकिस्तान में जश्न मनेगा। हमारी राजनीति में गुप्त रूप से एक ध्रुवीकरण डिपार्टमेंट चलता है जिसके कुछ धारदार हथियार हैं। गोमांस, बांग्लादेश और पाकिस्तान का नाम अचूक हथियारों के रूप में लिया जाता है। अमित शाह ने पाकिस्तान का नाम क्या लिया, बिहार बीजेपी के नेता पाकिस्तान-पाकिस्तान करने लगे हैं। वैसे चुनावी काम में बांग्लादेश का हथियार ज़्यादा चलता था मगर अब लगता है कि भोथरा हो चुका है। वर्ना एक समुदाय को टारगेट करने के लिए बांग्लादेशी कह देना काफी होता था। पाकिस्तान हमारे मुल्क में एक मुल्क से ज़्यादा मज़हब की पहचान है। इसीलिए हमारे मुल्क में मज़हब की पहचान उभारने के लिए पाकिस्तान का सहारा लिया जाता है।
अगर सीमांचल के मुस्लिम बहुल इलाके में ध्रुवीकरण की बात थी तो कायदे से बांग्लादेश का ही नाम लिया जाना चाहिए था। सीमांचल की सीमा बांग्लादेश से जा लगती है। शायद बांग्लादेशी का चुनावी भूत ठंडा पड़ चुका है। दावों के मुताबिक, बीजेपी की जीत में कोई शंका नहीं है फिर भी पाकिस्तान में जश्न को लेकर इतनी बेचैनी क्यों है, समझना मुश्किल नहीं है। क्या जीतने के बाद बीजेपी गोमांस और पाकिस्तान के मुद्दों को औपचारिक रूप से श्रेय दे पाएगी। हम हिन्दुस्तानी हैं इसलिए नहीं कि हमारे पड़ोस में कोई पाकिस्तानी या बांग्लादेशी है। हमें पाकिस्तान के अनुपात में अपने नागरिकों की राष्ट्रीयता आंकने की आदत छोड़ देनी चाहिए। पाकिस्तान को लेकर दिए जा रहे बयानों का विश्लेषण करेंगे तो पता चलेगा कि भारत-पाक संबंधों को लेकर हमारी राजनीतिक समझ कितनी छिछली हो चली है।
मैं पाकिस्तान नहीं गया हूं। इसलिए गूगलागमन के ज़रिये पता लगाने का प्रयास किया कि पाकिस्तान में दिवाली कौन मनाता है। सारे सर्च यही बता रहे थे कि पाकिस्तान में हिन्दू दिवाली मनाते हैं। अमित शाह के तर्क के हिसाब से बीजेपी के हारने के बाद क्या उन्हें दिवाली नहीं मनानी चाहिए। वे अपनी पार्टी की हार से किसकी राष्ट्रीयता और धार्मिकता पर सवाल खड़े कर रहे हैं। 16 मई 2014 को बीजेपी ने ऐतिहासिक जीत हासिल की थी। गूगल तो बताता है कि वहां दिवाली मनाई गई थी। बल्कि पाकिस्तानी हिन्दुओं ने मांग की थी कि दिवाली के रोज़ छुट्टी होनी चाहिए। एक ख़बर के मुताबिक, सिंध प्रांत के मुख्यमंत्री ने पिछले साल पहली बार आधिकारिक तौर पर दिवाली मनाने और हिन्दू कर्मचारियों को बोनस देने का एलान किया था। गूगल यह नहीं बता सकता कि दिल्ली चुनावों में हार के बाद पाकिस्तान में दिवाली मनी थी या नहीं। वहां के पाकिस्तानी हिन्दुओं ने पटाखे छोड़े थे या नहीं। हम इन तर्कों और बयानों से किसे दागदार कर रहे हैं। किसे सवालों के घेरे में खड़े कर रहे हैं।
जून के महीने में जब रमज़ान शुरू हुआ तो प्रधानमंत्री मोदी ने बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ को फोन कर रमज़ान की बधाई दी थी और शुभ संकेत के तौर पर भारत की जेलों में बंद पाकिस्तानी कैदियों को रिहा किया था। दिवाली के मौके पर भारत के प्रधानमंत्री को आग्रह करना चाहिए कि पाकिस्तान और बांग्लादेश में दिवाली के दिन छुट्टी होनी चाहिए। ऐसा करने से भारत-पाक या भारत-बांग्लादेश संबंध और अधिक गुलज़ार होंगे। मुझे पता नहीं, बांग्लादेश के दौरे पर गए प्रधानमंत्री मोदी ने ऐसी कोई मांग की थी या नहीं।
अमित शाह के बयान से दिवाली के दिन पाकिस्तानी हिन्दुओं को नैतिक संकट न हो जाए कि हम यहां पटाखे छोड़ रहे हैं और वहां बीजेपी नहीं जीतने पर हम पर शक कर रही है। कहीं पाकिस्तान को यह कहने का मौका न मिल जाए कि देखिए बिहार में ग़लती से बीजेपी के हारने पर हमारे हिन्दू दिवाली मना रहे हैं। वैसे दावा तो बीजेपी के ही जीतने का है। उनके लिए बीजेपी एक ज़रूरी पार्टी हो सकती है क्योंकि पाकिस्तान और बांग्लादेश के हिन्दुओं के लिए लड़ने का दावा बीजेपी ही मुखर रूप से करती है। बांग्लादेश में मारे जा रहे हिन्दू ब्लॉगरों को लेकर बीजेपी सरकार कितनी सक्रिय है, आपको गूगल करना चाहिए। बीजेपी को हारना नहीं चाहिए वर्ना हारने पर हिन्दुस्तान में पटाखे छोड़ने वाले सभी लोग भी शक के दायरे में आ सकते हैं कि कहीं वे पाकिस्तानियों की तरह खुश तो नहीं हैं।
ज़ाहिर है पाकिस्तान को लेकर दिये जा रहे बयानों में बचपना झलक रहा है। बीजेपी के इन बयानों से दिवाली के दिन पटाखे फोड़ने वाले दोनों मुल्कों के हिन्दू फंस सकते हैं। वैसे किसी को पटाखे नहीं छोड़ने चाहिए। इससे सिर्फ प्रदूषण फैलता है, लेकिन पटाखे सभी धर्म के लोग फोड़ते हैं। आतिश
बाज़ी के लिए बारूद कौन लेकर आया, इस पर लिखूंगा तो लोग पटाखों पर धार्मिक कारणों से बैन लगाने के लिए दौड़ पड़ेगे। बीजेपी पाकिस्तान का नाम लेकर पाकिस्तान को डरा रही है तो उसका संबंध बिहार चुनाव से कैसे है। उसके लिए तो उसकी दिल्ली में बैठी सरकार ही काफी है। अमित शाह कहते हैं कि बिहार चुनाव का असर मोदी सरकार पर नहीं पड़ेगा। जब यहां के चुनाव का असर यहां की सरकार पर नहीं पड़ने वाला है तो पाकिस्तान को क्या फर्क पड़ेगा। पड़ेगा तो हम क्यों चिन्तित हैं।
लोकसभा चुनावों के दौरान जब बीजेपी नेता गिरिराज सिंह ने मोदी को रोकने वालों को पाकिस्तान जाने की बात कही थी तब इस बयान को लेकर वे बीजेपी में अकेले पड़ गए थे। गूगल किया तो पता चला कि बीजेपी अध्यक्ष के नाते राजनाथ सिंह ने उनसे सख्त एतराज़ जताया था और सुशील मोदी ने उनके इस बयान को ग़ैर ज़िम्मेदार बताया था। अब एक साल के भीतर बीजेपी के ही अध्यक्ष पाकिस्तान वाले बयान दे रहे हैं और वही सुशील मोदी कह रहे हैं कि लालू-नीतीश जीते तो बिहार को पाकिस्तान बना देंगे। क्या केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रहते कोई हिम्मत कर सकता है कि देश के किसी हिस्से को पाकिस्तान बना दे। क्या भारत के किसी राज्य का कोई मुख्यमंत्री पाकिस्तान बना सकता है।
सुशील मोदी ने पूछा है कि नीतीश कुमार बताएं कि वे तीन साल पहले पाकिस्तान क्यों गए थे। क्या यह सवाल एक दिन अटलजी और आडवाणीजी के दरवाज़े पर भी जाएगा कि वे बतायें कि पाकिस्तान क्यों गए थे। क्या सुशील मोदी अपने इन सवालों को प्रधानमंत्री की तरफ मोड़ देंगे कि वे बताएं कि शपथ ग्रहण के दिन पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को क्यों बुलाया था। गिरिराज सिंह कहते हैं कि लालू-नीतीश में जिन्ना का जिन्न घुस गया है। आडवाणीजी ने जिन्ना को सेकुलर बता दिया था। अपने पद से इस्तीफा देकर वे अभी तक बीजेपी में ही हैं। बिहार के चुनाव को धार्मिक राष्ट्रीयता के मुद्दे के सहारे मोड़ा जा रहा है। मुड़ा है या नहीं, यह तो आठ नवंबर को पता चलेगा।
राजनीति में तर्क की जगह बची होनी चाहिए। पाकिस्तान हमारे लिए कब पड़ोसी हो जाता है, कब होने वाला दोस्त हो जाता है और कब आतंकवाद से लेकर भारतीय मुसलमानों की निष्ठा पर सवाल करने का मौका बन जाता है, यह सब किसी पार्टी की चुनावी संभावना पर ज़्यादा निर्भर करता है। कभी क्रिकेट को लेकर भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध जैसा माहौल होता था लेकिन वो युद्ध इतनी बार हो चुका है कि अब किसी को फर्क ही नही पड़ता कि दोनों देश एक-दूसरे के साथ खेल ही नहीं पा रहे हैं। वही हाल राजनीति में पाकिस्तान का होने वाला है। पाकिस्तान का मसला चूक गया है। बिहार में जो जीते, वहां सबकी हार है। इस बार का चुनाव भूत-पिशाच और पाकिस्तान, गोमांस पर ही निपट गया। हां, बिहार के चुनाव में पाकिस्तान ज़रूर जीत गया है। वो बैठा-बैठा सोच रहा होगा कि हमारा नाम लेकर हिन्दुस्तान में कोई पार्टी चुनाव भी जीत सकती है। बीजेपी के जीतने के बाद पाकिस्तान को बधाई देनी चाहिए। मुबारक हो, आप हमारा नाम लेकर जीत गए!
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