Monday, December 8, 2014

Poem by Dushyant Kumar

Sharing an email, forwarded by friends to mark the completion of AAP's two years of honest politics:

आज यह दिवार , परदो की तरह हिलने लगी ,
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिये । 

हर सडक पर ,हर गली मे , हर नगर ,हर गांव मे 
हाथ लहराते हुए, हर लाश चलनी चाहिये । 

सिर्फ हंगामा खडा करना मेरा मकसद नही ,
सारी कोशिश है कि ये सुरत बदलनी चाहिये । 

मेरे सीने मे नही तो तेरे सीने में सही ,
हो कही भी आग ,लेकिन आग जलनी चाहिये । 
-दुष्यंत कुमार 

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